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Showing posts from 2019

সংগ্রহ

এসো আজ আমার মনের গভীরে থেকে যায় যেমন নিঃশ্বাস শরীরে নিস্তেজ জীবনে রং ফিরিয়ে আন জ্যানো সাদা মুখ মাখা আবিরে তোমার নামে দিন শুরু তোমার নামে রাত শেষ তোমায় ছাড়া আমি কি? নিষ্প্রাণ এক অবশেষ একটা কথা বলি সোন, হে পার্থ পৃথিবীতে সবচেয়ে বড় স্বার্থ যে মায়ায় বেঁধে রয় সে অপদার্থ যে কাজ বের করে নেয় সেই সিদ্ধার্থ কিছুই যে বলতে পারি না তোমায় কাটিয়ে যাই মিলনের আশায় এই দূরত্ব আর সহ্য হয়ে না চলে এসো ও প্রিয়তমা আর কত অপেক্ষার কষ্ট দেবে আমায়

मेरे विचारों का पुलिंदा

किस्से और कहानियाँ सुनाना मेरे जाने के बाद मेरी दास्ताँ सुनाना गर इजाज़त ना हो चीखने की तो दबे होंठों से ही मेरा फ़साना सुनाना ज़रूरी नहीं की अपना मिलना तारों में लिखा हो मगर हमारे ज़िद के किस्सों से भी वाकिफ़ कहाँ हो तुम ये मन क्या है , एक सागर है विशाल , अथाह , और   अविरल और विचार भी इसकी लहरें हैं कभी खुद में टकरा के संगीत बनाती है और कभी कोलाहल क्या कहूँ मैं उसको जिसने   खोया है कोई अपना ज़बान भी काठ की है , और जिस्म भी साथ हूँ उसके अपनी खामोशी के साथ की अल्फ़ाज़ों की ज़रूरत नही इस मौके पे इश्क़ के लाल के ऊपर सियाही का काला बाज़ी मार गया हज़ारों पर परवान चढ़ा किस्सों का मेरे जहाँ एक से मोहब्बत हार गया किताबों का क्या है कुछ पन्नें , कुछ अल्फ़ाज़ एक शाहजहां , एक मुमताज़ एक अंजाम और एक आग़ाज़ बांध दो मुझे इन लोहों की बंदिशों में तुम , मगर मेरे तसव्वुर को किन बेड़ियों में बाँधोगे मेरे अल्फ़ाज़ों को क़ैद कहाँ कर सकोगे है जीवन एक कुरुक्षेत्र बड़ा शत्रु भी डटा आंखे गड़ा किंचित भयभीत ना हो तुम है कृष्ण तुम्हारे साथ...

खुद से ख़फ़ा

आज चलो बचपन वापस जी आते हैं कॉपी-किताबों पर थोड़ा कम समय बिताते हैं जो कर ना पाए शरारत हम, उस पर ही सही चलो आज खुद से ख़फ़ा हो जाते हैं दोस्तों के साथ थोड़ा और 'अड्डा' जमाते हैं दिन ढले भी मटरगश्ती करते जाते हैं थोड़ी देर और यादें बनाते हैं, और जो बन ना पाई उन यादों की खातिर आज खुद से ख़फ़ा हो जाते हैं अपने होंठों से आज चुप्पी की बंदिश हटाते हैं जिन्हें जता न सके हम, उनसे इक़रार कर आते हैं घड़ी की सुइयों को वापस घुमाते हैं, इज़हार कर जाते हैं और उन खामोशियों के नाम पे चलो आज खुद से ख़फ़ा हो जाते हैं माँ-बाप के साथ थोड़ा और वक़्त बिताते हैं उनकी हँसी को वापस लाते हैं जो हिस्से का वक़्त अपनी आकांक्षाओं पर दे दिया उन लम्हों की ख़ातिर आज खुद से ख़फ़ा हो जाते हैं

एक ही है ना

तू कहती है हम एक जैसे नही पर कहानी तो हमारी एक ही है ना जो तेरे आँखों को चूमता सुरमा है तो मेरे आँखों के नीचे काले घेरे भी हैं ना जो तेरे कदमों की पदचाप है वो मेरे दिल की धड़कन भी है ना जो तेरे जिस्म की खुशबू है वो मेरे लिए इत्र भी है ना जो तेरे मुस्कान की लाली है वो मेरे लहू को रंगती भी है ना तू कहती है हम एक जैसे नही पर ज़िंदगानी तो हमारी एक ही है ना

आलिंगन

पैर धोता महासागर, मुकुट भी विराजमान है जो कल देखा भविष्य था, वह आज वर्तमान है यह राष्ट्र तिलक, यह राज मुकुट, इस राष्ट्र का अभिमान है नेपथ्य में इस आलिंगन के, असंख्य बलिदान हैं ...

अमान

मेरी नज़रें तुम्हारी नज़रों को खोजती हैं, टटोलती हैं की देख लो एक मर्तबा मेरी ओर भी ज़ुबाँ तो मेरी काठ की है, बस निगाहें ही बोलती हैं पश्मीना सी कोमल तुम्हारी ज़ुल्फें इनमे ग़ुम ह...

इतवार की शाम

याद तुम्हारी कुछ थमकर की आती हैं अब मेरे इतवार की शाम हो तुम नींद आज भी तुम्हारे सपनों के साथ ही टूटती है मेरे सुबह की आज़ान हो तुम और हर बात में तुम्हारी बात लबों पर आती है जैस...

कभी फ़ुर्सत हो तो वापस आना

कभी फ़ुर्सत हो तो वापस आना की आजकल कोई दिखता नही जो अपना हो अब आँखें मेरी सूख रही हैं इंतज़ार में की शायद अभी ही आ रही होगी और तुम्हारा अक्स धूमिल होता जा रहा अब आके उसे ताज़ा कर ज...