मेरे विचारों का पुलिंदा

किस्से और कहानियाँ सुनाना
मेरे जाने के बाद मेरी दास्ताँ सुनाना
गर इजाज़त ना हो चीखने की
तो दबे होंठों से ही मेरा फ़साना सुनाना

ज़रूरी नहीं की अपना मिलना तारों में लिखा हो
मगर हमारे ज़िद के किस्सों से भी वाकिफ़ कहाँ हो तुम

ये मन क्या है, एक सागर है
विशाल, अथाह, और  अविरल
और विचार भी इसकी लहरें हैं
कभी खुद में टकरा के संगीत बनाती है
और कभी कोलाहल

क्या कहूँ मैं उसको जिसने  खोया है कोई अपना
ज़बान भी काठ की है, और जिस्म भी
साथ हूँ उसके अपनी खामोशी के साथ
की अल्फ़ाज़ों की ज़रूरत नही इस मौके पे

इश्क़ के लाल के ऊपर
सियाही का काला बाज़ी मार गया
हज़ारों पर परवान चढ़ा किस्सों का मेरे
जहाँ एक से मोहब्बत हार गया

किताबों का क्या है
कुछ पन्नें, कुछ अल्फ़ाज़
एक शाहजहां, एक मुमताज़
एक अंजाम और एक आग़ाज़

बांध दो मुझे इन लोहों की बंदिशों में तुम, मगर
मेरे तसव्वुर को किन बेड़ियों में बाँधोगे
मेरे अल्फ़ाज़ों को क़ैद कहाँ कर सकोगे

है जीवन एक कुरुक्षेत्र बड़ा
शत्रु भी डटा आंखे गड़ा
किंचित भयभीत ना हो तुम
है कृष्ण तुम्हारे साथ खड़ा

कुछ पन्नों का खाली रह जाना ज़रूरी होता है
तय आप करते हो कि कहानी का अंत कैसा होगा

हम दोष दें किसे
की रास्ते अलग हो गए
हाथ पलट कर लकीरों को देखा
तो वो भी कुछ दूर जाके बिछड़ जाते हैं

जब रिश्तों का बाज़ार गर्म हो,
तो लाइफटाइम गारंटी की इच्छा करना मुनासिब नही।

मुद्दतों बाद बात ये याद आयी है
की कहीं छूट गया है मेरा कुछ
अब वापस लौटने को जी करता है
तो सोचता हूँ की
क्या पहचान पाऊंगा उसे जो मेरा ही है

सिमट लेने दो मुझे खुद में ही,
की औकात की चादर कुछ छोटी पड़ रही

हमें हमसफ़र मानो या
पल दो पल का हमराही
शिद्दत जितनी उमरों में रहेगी
उतनी लम्हों में भी

गर रंग न चढ़ा इबादत का
तो क्या खाक़ ही इश्क़ किया
हदों में रहकर बस सदक़ा
किया जाता है, इश्क़ नहीं

मेरे अधूरे सवालों से
दिल में क़ैद मलालों से
वक़्त हो चला तुम्हारे रवानगी का
मेरे ज़हन में बसे ख़यालों से

मेरे किस्सों में शामिल हो
और वो किस्से भी कामिल हों
कोई और उनपे नज़रें फेंरे ना फेंरे, पर
तू ही उन किस्सों की फ़ाज़िल हो


Comments

Popular posts from this blog

दूसरा अध्याय

A Man Faced with his Mortality

Pro Tips on Trekking (by an Amateur)