इतवार की शाम
याद तुम्हारी कुछ थमकर की आती हैं अब
मेरे इतवार की शाम हो तुम
नींद आज भी तुम्हारे सपनों के साथ ही टूटती है
मेरे सुबह की आज़ान हो तुम
और हर बात में तुम्हारी बात लबों पर आती है
जैसे मेरे होंठों में क़ैद पयाम हो तुम
की अब कोशिश कर रहा हूँ
यादों से उभरने की तुम्हारी
लेकिन मुझ शराबी के सामने छलकता जाम हो तुम
चाहते हुए भी किसी को चाह ना सकूँ
मेरे इश्क़ पर लगा लगाम हो तुम
पता नही किन यादों को झकझोर के जाओगी
बंद लिफ़ाफ़े में भरा पैग़ाम हो तुम
और जाते जाते भी आँखें नम कर जाती हो
हाँ, मेरे इतवार की शाम हो तुम
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