आलिंगन
पैर धोता महासागर, मुकुट भी विराजमान है
जो कल देखा भविष्य था, वह आज वर्तमान है
यह राष्ट्र तिलक, यह राज मुकुट, इस राष्ट्र का अभिमान है
नेपथ्य में इस आलिंगन के, असंख्य बलिदान हैं
ट्यूलिप के बाग भी, कुछ ज़्यादा विभूतिमान हैं
हिम-शिखर पर पड़ती रश्मियाँ भी ज़्यादा दीप्तिमान हैं
नभ से यह मेंह नही, हर्षोल्लास के वृष्टिमान है
राष्ट्र-निर्माण के महा-यज्ञ का यही तो अनुष्ठान है
पूर्ण-विलय यह, वर्षों के तप का परिणाम है
निश्चय, नीति, नवचेतना का यह जीवंत परिमाण है
शतरंज की इस बिसात पर, विजय का यह प्रमाण है
विजयी वही इस खेल में, जो शांत-धैर्यवान है
साम-दाम-दंड-भेद, चाणक्य के संतान हैं
पिरोया एक सूत्र में जिसने, वही मौर्य महान है
और विफल रहा प्रयास में जो, उसकी कहाँ पहचान है
जो सौम्य वरन् तटस्थ रहे, वही तो शक्तिमान है
शस्त्र बिना जो रण जीते, वही तो बुद्धिमान है
धरा बनी इस स्वर्ग की, जो वर्षों से लहूलुहान है
शेष हो यह समर भी, स्वर्ग बना बियाबान है
विशेष रहकर भी क्या हुआ, अब सब समान हैं
मिलो, जुलो, साथ चलो, यह पथ भी आसान है
बुद्धिजीवियों का इस प्रकरण पे भी मिथ्याभिमान है
जो टूट कर रहे, जो रुक कर चले, वही राष्ट्र महान है
दोमुंही बातों से इनकी, यह जग भी हैरान है
राग-द्वेष की दुकान चले, बस यही अरमान है
एकता-अस्मिता से रहते ये परेशान हैं
छोटे-छोटे तीर हैं ये, सीमा पार कमान है
देश जले, पर घर चले, इसमे इनको अभिराम है
हे राजन्, तुम ध्यान न दो, यह इनका प्रतिमान है
पर संशय ना हो विषय पर, की ध्येय लोक-कल्याण है
विश्वास जीतो की जुड़ने वाला हर शख़्स भाग्यवान है
पथ-भ्रष्ट हुए इस उद्देश्य से, की करना राष्ट्र-निर्माण है
लेखनी जागृत होगी फिर मेरी, यह मात्र अल्पविराम है
अदभुत लेखनी
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ReplyDeleteদুর্দান্ত কবিতা। ভাষা, ভাব এবং উপস্থাপনা সত্যি অতুলনীয়।
ReplyDeleteDaroon thakurpo!
ReplyDeleteBeautiful poem
ReplyDeleteMarvellous!
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