Posts

Showing posts from 2024

नवदुर्गा नमस्तुते

पर्वत राज हिमालय गृहे महादेवी पदार्पण पुत्रीरुपे त्रिशूल-कमल धारिणी देवी वृषभवाहिनी चंद्रमा शोभित , सती भवानी माँ शैलपुत्री नमस्तुते   श्वेतांबरधरा तपस्विनी अक्षमाला-कमंडल धारिणी कमल पुष्प शृंगाररत अनंत काल सहतप-चारिणी शिव भक्ति वासिनी माँ ब्रहमचारिणी नमस्तुते   त्रिनेत्री व दशोभुजा जागृत मानवी शक्तिरूपा अर्धचंद्र मस्तके धारिणी समर निनाद उद्घोषिणी असुर-राक्षस दमनकारिणी माँ चंद्रघंटा नमस्तुते   श्रीमुखी , अष्टभूजा सिद्धि-निधि दात्री , माता सूर्यवासिनी मृदु ऊष्मा उज्ज्वलित सूर्य देव प्रबोधिका तेजोमय , ब्रह्मांड सृजनी माँ कुष्मांडा नमस्तुते   चतुर्भुजा , मातृरूपी बुद्धि , निधि , समृद्धि दात्री सकल मानस आनंददायिनी समस्त जग परिष्कृत कारिणी कुमार जननी , कमल धारिणी माँ स्कंदमाता नमस्तुते   देव तेज जनित सिंह-आसन विराजित पग रक्त-रंजीत , असुरनाशिनी शंख-चक्रधारिणी महिशासुरमर्दिनी माँ कात्यायनी नमस्तुते   अबद्ध केश , कृष्ण चर्म कोप दृष्टि , गर्दभ वाहिनी भक्त वरदात्री , देवी शुभंकरी शुंभ-निशुंभ नाशिनी रक्तबीज विनाशिनी माँ कालरात्रि नमस्तुते ...

गोधूलि बेला

“ये लो। वैसे मैं इससे अच्छा बना लेता हूँ” कहकर रजत सुधा को भेल-पूरी का एक दोना पकड़ा देता है। “तूने खाया भी नहीं और अपने एक्सपेर्ट कमेंट दे दिये ? ” “नहीं , जब वो बना रहा था तो थोड़ा सा ले लिया था” “अच्छा , लेकिन मुझे कैसे पता होगा ? तूने कभी कुछ बना के खिलाया ही नहीं। खाली बोलता रहा कि बना के खिलाऊंगा” सुधा ने शिकायत करते हुए कहा। “ना कभी मौका ही था , ना दस्तूर” रजत ने अपनी ओर सफ़ाई दी और फिर कहा , “जानती हो , मैंने कभी सोचा नहीं था कि तुम्हें साड़ी में देखूंगा। यू नो , ऐसे नोर्मली , ऐसे खुले में विचरण करते हुए” “हाँ , मैंने भी नहीं सोचा था... लेकिन यही जीवन है। और कोई ऐसे खुले में नहीं घूम रही हूँ मैं। सीधे एक फंक्शन से आ रही हूँ। कि साहब आए हैं , थोड़ा मिल लूँ। बड़े लोगों के सानिध्य में रहने से फ़ायदा ही होता है , ऐसे बड़े-बुजुर्ग कह गए हैं।” सुधा अपने पास रेत को साफ़ करके रजत को बैठने का इशारा करती है। “ ‘ बड़े-बुजुर्ग ’? मुहतरमा थोड़ी सी शरम कर लीजिये। आप खुद बड़े और बुजुर्ग दोनों वर्गों की प्रीमियम सदस्या बन चुकी हैं” कहकर रजत अपने चप्पल को बाजू में रखकर सुधा के बाएँ तरफ़ बैठ जाता ...

ইচ্ছা

তোমার সাথে হাসতে চাই তোমার পাশে সকালে জাগতে চাই তোমার কাঁধে মাথা রেখে থাকতে চাই তোমার হাত ধরে জীবন হাঁটতে চাই তোমার রং নিজের ওপর মাখতে চাই তোমার কেশের ছায়াতে নিজেকে ঢাকতে চাই  হাত ধরে কলেজ স্ট্রিটের এক রাউন্ড মেরে বিকেল বেলায় চা-সিঙ্গাড়ার এক রাউন্ড মারতে চাই গঙ্গার পাশে বসিয়া শব্দহীন হয়ে বাতাসে নিখোঁজ তোমার পাস ধরে থাকতে চাই গাঁদা ফুলের মৃদু গন্ধে মাখা ভবিষ্যতে তোমার হাসি মেলানো পাখিদের আওয়াজে উঠতে চাই এসেছো জীবনে তো থেকে যাও একটু জীবন ভর যা পেয়েছি তোমাকে তো পরবর্তী জীবনেও তোমাকে প্রাপ্য চাই তুমি না এলে কি হতো? জীবনটা একটু...না একটু না, অনেকটাই ফাঁকা-ফাঁকা থাকত এই যা জীবনে এনেছ, আজীবন এই পরিপূর্ণতা চাই তোমাকে ভেবে, তোমাকে দেখে যা একটা মৃদুহাসি মুখে আমার চলে আসে সেই হাসিটা আমার শেষ নিঃশ্বাস পর্যন্ত চাই যাত্রীহীন কাটান দিনে তোমাকে ঠিক তেমন পেয়েছি যেমন শব্দহীন, স্তব্ধ রাত্রি তে একটা একল তারা টিমটিমিয়ে যায় যখন তুমি রবি ঠাকুরের বই বুক থেকে লাগিয়ে ঘুমিয়ে পড়লে তখন তোমার শ্রীমুখ থেকে চশমা সরিয়ে, জানলার পর্দা তা লাগাতে চাই আর তোমার তো নাম অনেক কেউ এই বলে ডাকে, কেউ ওই বলে ডাকে আমি শুধু তোমাক...

मुझसे अब मेरे हालात ना पूछा करो

मुझसे अब मेरे हालात ना पूछा करो ऐसे ही, बस यूं ही ना पूछा करो तुम बस तकल्लुफ़ करके चले जाओगे और हमें फिर से सवालो मे छोड़े जाओगे मुझसे अब मेरे हालात ना पूछा करो कि शायद तुम सच सुनना ना चाहो और मैं इसी इंतज़ार में जी रहा हूँ  कि कोई एक बार हमसे हमारे हाल पूछ ले मुझसे अब मेरे हालात ना पूछा करो कि क्या जवाब दूँ, इस सोच मे उम्र गुज़र जाए कि कैसे कह दूँ तुम्हें कि मेरा रक़ीब मेरी ज़िंदगी जी रहा है और उसके पहलू में तुम हँस कर ये सवाल किए जाते हो मुझसे अब मेरे हालात ना पूछा करो कि किस्मत से अब हमने समझौता कर लिया है कि वो नाकामी कि चादर ओढ़ कर हमें सोने देगा और सच से हमें रु-ब-रु ना होना होगा

किसी और जनम में

किसी और जनम में किसी और जहाँ में मुझे पता है तुम मेरे हो   जहाँ ना सरहदें हैं ना हदें हैं हैं तो बस मैं और तुम   किसी और जनम में किसी और जहाँ में ना बंदिशें होंगी ना आज़माइशें होंगी   जहाँ मुनासिब अल्फ़ाज़ होंगे जहाँ मुख्लिस अंदाज़ होंगे और होंगे सुनाने को कई किस्से और रोकने को होंगी नहीं समाज की ये बेड़ियाँ   जहाँ मैं शायद इतना बिला-तकल्लुफ़ हूँ की खुद के जज़्बातों से रु-ब-रु हूँ जहाँ मैंने खुद से खुद को पर्दा नहीं किया जहाँ मैंने तुम्हें रुसवा नहीं किया   किसी और जनम में किसी और जहाँ में मैं शायर नहीं हूँ की उस जनम में उस जहाँ में मैं इतना बदनसीब भी नहीं हूँ

हम अकेले रह जाएंगे

एक रोज़ नई सुबह होगी और हम अकेले रह जाएंगे मने एकदम अकेले नही होंगें बस सब अपनी-अपनी डगर पकड़ लेंगें कोई करियर को लेकर कोई लेकर परिवार को कोई बाल-बच्चों में लीन कोई लेकर व्यापार को और हम भी खोजेंगे खुद को व्यस्त रखने वाले उपाय कभी किताब के पन्ने पलटेंगे कभी बना लेंगे एक कप चाय लेकिन बात करने को कोई ना होगा और करनी भी क्यों है सबके अपने मसले हैं सबके अपने पचड़े हैं खुद को ही वो संभाल ले ये क्या कुछ कम है जो उन्हें आकर सँवारनी पड़े हमारी ज़िंदगी भी समेटना पड़े हमारे बिखरे टुकड़े भी कुछ दस-बीस साल काटने होंगे कुछ जागती रातें बितानी होंगी कुछ और किताब पढ़ लेंगे कुछ रेडियो पे धुन चलानी होंगी