हम अकेले रह जाएंगे
एक रोज़ नई सुबह होगी
और हम अकेले रह जाएंगे
मने एकदम अकेले नही होंगें
बस सब अपनी-अपनी डगर पकड़ लेंगें
कोई करियर को लेकर
कोई लेकर परिवार को
कोई बाल-बच्चों में लीन
कोई लेकर व्यापार को
और हम भी खोजेंगे
खुद को व्यस्त रखने वाले उपाय
कभी किताब के पन्ने पलटेंगे
कभी बना लेंगे एक कप चाय
लेकिन बात करने को कोई ना होगा
और करनी भी क्यों है
सबके अपने मसले हैं
सबके अपने पचड़े हैं
खुद को ही वो संभाल ले
ये क्या कुछ कम है
जो उन्हें आकर सँवारनी पड़े हमारी ज़िंदगी भी
समेटना पड़े हमारे बिखरे टुकड़े भी
कुछ दस-बीस साल काटने होंगे
कुछ जागती रातें बितानी होंगी
कुछ और किताब पढ़ लेंगे
कुछ रेडियो पे धुन चलानी होंगी
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