मैं
खुद को खुदा में खोजता भी मैं
और खुद को ज़र्रा सोचता भी मैं
इंसानों में नायाब, बेनज़ीर भी मैं
और यूं ही बिखरा मुन्तशिर भी मैं
मेरे हसरतों से जूझता भी मैं
मेरे तोहमतों से टूटता भी मैं
मेरे ख़ल्क़ में शामिल भी मैं
मेरे अक्स का कातिल भी मैं
मेरे अहम् से बड़ा भी मैं
आज रस्ते पर खड़ा भी मैं
ऊपर से अशफ़ाक़ भी मैं
इरादों से नापाक भी मैं
इस दुनिया का मुसाफिर भी मैं
दुनियादारी का काफिर भी मैं
इस मायाजाल का अनुरागी भी मैं
सब छोड़ चला वो बैरागी भी मैं
सब का रचयिता इलाही भी मैं
वो कालरूप तबाही भी मैं
ईमान में बसता स्याही भी मैं
कौड़ियों में बिकता वाहवाही भी मैं
ख़ज़ानों से बड़ा औकात भी मैं
और कौड़ी से कम की खैरात भी मैं
सड़कों पे गुस्साई भीड़ भी मैं
और ऑफिस में गायब रीढ़ भी मैं
फ़रक मिटाने का मांग भी मैं
थप्पड़ से पौरुष जताता स्वांग भी मैं
युगों-युगों का संस्कार भी मैं
संस्कार का ढाल लिए धिक्कार भी मैं
जब इतना द्वंद्व तो कौन हूँ मैं?
अंदर है शोर, बाहर मौन हूँ मैं
क्या उत्तर दूँ इस प्रश्न का की
इन सब तज़ब्ज़ुब का की कौन हूँ मैं ?
इस वहशी, दरिन्दी दुनिया में
खुद से ही जलता मोम हूँ मैं
शराफत का एक खूबसूरत चोगा पहने
एक जाहिल , बद्ज़ात कौम हूँ मैं
Itna sundar atm avalokan air atm chintan ,shabd sangathan bhi apurva. ...subah na shuruat bahut sundar hua,thank you
ReplyDeleteThanks Maa
Deleteयही मैं सब समस्या का कारण भी है। यदि इंसान इस मैं को लिए स्वयं से प्रश्न करता और यह समझता की उसके हाथ में कुछ भी नहीं है तो आधे से अधिक समस्याओं का निदान हो जाता। बहुत ही सरल भाषा में बहुत बड़ी बात कह दी आपने।
ReplyDeleteThanks a ton. Agar agli baar naam bhi bataye to sambodhit karke dhanyawad gyapan kar dunga.
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