ज़हर
ज़हर कितने तरह के होते हैं?
एक राजा, एक रानी और उनकी कहानी
फिर तिरस्कार, प्रताड़ना और मनमानी
बेल्ट पकड़े, आगे बढ़ते, खींसे निपोरते राक्षस की
सुर्ख आंखों से झलकती उस कहर को सहते जाने का ज़हर
परिवार को अपने पसीने से सींचते
ऑफिस में लज्जित-अपमानित होकर भी खुद को खींचते
धूप में दौड़ते-भागते एक बाप का खून
चूसती जाती, इस चिलचिलाती दोपहर का ज़हर
नेटफ्लिक्स, मैगी, वो 10x10 की कोठी
बेस्वाद सब्ज़ी टिफ़िन में, और आधी कुतरी रोटी
शोर-शराबे और भीड़ के बीच
अकेलेपन का एहसास कराती इस शहर का ज़हर
बीच रात अचानक उठ के शून्य को ताकते जाना
वास्तविकता से परे हो जाना, यथार्थ को मान न पाना
उंगलियों के दरमियान इन खाली जगह को देख
वो भीनी-भीनी यादों की लहर की ज़हर
ज़िन्दगी के तराज़ू में है पड़ी
कर्मों की कुछ खट्टी-कुछ मीठी घड़ी
लेकिन अपने हिस्से सिर्फ ग़म पा कर एहसास होता
रब से ना मिलने वाली उस मेहर का ज़हर
कुछ सपने थे आंखों में जो अश्र बन कर बह गए
बंद मुट्ठी में जो थे, सब रेत बनकर रह गए
टूटे सपनों के मसान के बीच
आस जगाती उस नई सहर का ज़हर
Brilliantly carved out the everyday poison.
ReplyDeleteHow so brilliant everytime you lay ink to paper.