मैं कवि हूँ
मैं कौन हूँ?
मैं कवि हूँ
आज भी हूँ और कल भी हूँ
अमृत भी हूँ, हलाहल भी हूँ
अजर हूँ मैं, अमर भी हूँ
तप भी मैं, और समर भी हूँ
मैं ही तो कविगुरु में बसता हूँ
और महाकाव्य भी मैं ही रचता हूँ
छन्दों में लिपट सम्मान भी बनता हूँ
देश का राष्ट्रीय-गान भी बनता हूँ
उर्वशी का श्रृंगार भी मैं
दिनकर का हुंकार भी मैं
रश्मिरथी की इच्छा में हूँ
और परशुराम की प्रतीक्षा भी मैं
बच्चन की मधुशाला में हूँ
पैमाने भरती मधुबाला में हूँ
और समाज को आइना दिखाती
उस लपट भरी ज्वाला में भी मैं
गीता का सार हूँ मैं
ओज भी मैं, श्रृंगार भी मैं
रामचरितमानस के राम में हूँ
और हास्य कवि सम्मेलन की शाम में भी मैं
चंचल मन की भाषा भी मैं
एक पुष्प की अभिलाषा भी मैं
सुकुमार रे के 'आबोल-ताबोल' में
एक बालक की छोटी सी आशा भी मैं
एक शायर का अल्फ़ाज़ हूँ मैं
सरफ़रोशी का आग़ाज़ भी मैं
संवेदनाओं का परवाना हूँ मैं
और विश्वास का पागल-दीवाना भी मैं
मैं तुझमे हूँ और तू मुझमे है
कुछ सब में है, और सब कुछ में है
ये ज़रूरी नही आज की कौन हूँ मैं
पूछना तब, जब मौन हूँ मैं
जब तक कल्पना-प्रमुख हूँ, ठीक है
तुम आगे आ जाना, जब गौण हूँ मैं।
Beautiful. Made me smile wonder at your talent. The poise and the beauty of it. Thanks for the inspiration. 😊
ReplyDeleteThe day I am able to write even half as good as you, I'll feel blessed.
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