Posts

Showing posts from 2021

दूसरा कर्ण

निर्वस्त्र, निरस्त्र खड़ा मैं रण में क्या ऐसा युद्ध स्वीकार्य धर्म में? वासुदेव, तुम कहो तो ये भी मान्य छला गया हूँ हर पल इस जन्म में इस जग में मेरा उपहास हुआ मेरे मान का ह्रास हुआ कुमारों की प्रतियोगिता में मेरे योग्यता पर अविश्वास हुआ गुरु ने भी समझा ना समान पार्थ हुआ सबका अमान सूत होना मेरा दोष हुआ क्या ना पुरुषार्थ देखा, ना वर्तमान तप से सींचा मैंने अपना बल फिर भी अपमान पिया जैसे हलाहल दुर्योधन ने अपनाया मुझे जब छिन गया था ममता का आँचल सब पूछे मुझसे पहचान मेरा मेरी भुजाएं ही हैं अभिमान मेरा कौन्तेय से ना कम कौशल में महाभारत रहेगा प्रमाण मेरा नियति ने भी क्या व्यूह रचा प्रथम पांडव भी बना प्रजा माता भी आई हृदय से लगाने तब जब महासमर का बिगुल बजा राधेय, तुम हंसी कर जाते हो अब तुम धर्म याद दिलाते हो पहले रखा धर्म देहरी के बाहर फिर अब क्यों विधि से कतराते हो? दोष नही तुम्हारा सूत होना है पर इस बात पर कुंठित होना है ध्यान इस पर नही कि क्या मिला पर जो ना मिला उस पर रोना है मित्र भी हुए तुम बहुत विशिष्ट दुर्योधन के हुए अति घनिष्ठ यह नही की उसे सन्मार्ग पर लाओ पापों में हुए समान लिप्त शकुनि, ...

Screaming My Name

What I started as And what I became Fighting me for myself I am screaming my name There's maybe someone else Who has taken my place Am calling out to him Screaming my name In the mirror, there's a face Whose name I misplace Lost within him, maybe I am there Calling myself I am screaming my name Bound up in chains Broken and in pain Asking for salvation I am screaming my name For long I have played this game Chasing after my bane Maybe it's just me I am screaming my name I can't play this game, born again I refuse to be tamed But they are baying for my blood They are screaming my name I have to rise above them I have to break the chains I stand alone in the Colosseum Everyone's screaming my name

ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है

ये खुशियों, ये मस्ती, ये जश्नों की दुनिया ये कल के साँसों पे प्रश्नों की दुनिया ये चलती सी फिरती, ये लाशों की दुनिया ये उम्मीदों में जीते हताशों की दुनिया ये उन्माद की आगों में जलती सी दुनिया ये हर मोड़ पर होती गलती की दुनिया ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है ये रुकते-सुलगते ख्वाबों की दुनिया ये जलते से बुझते चराग़ों की दुनिया ये बेफ़िक्री में उड़ते मौजों की दुनिया ये दिमाग़ों में चीखती आवाज़ों की दुनिया ये नाक सिकोड़ती समाजों की दुनिया ये सड़कों में जलती चिताओं की दुनिया ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है ये चाल चलती सियासतों की दुनिया ये हसरतों की होती शहादतों की दुनिया ये कोरी सी काली रातों की दुनिया ये बेबस, बेज़ार हालातों की दुनिया ये निरुत्तर कराती सवालों की दुनिया ये घुटती-सिसकती मलालों की दुनिया ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है ये बेड़ियों से बचती गुनाहों की दुनिया ये ईमान बेचती सभाओं की दुनिया ये चमकते-भड़कते लिबासों की दुनिया और उनमें ही चलते ज़िंदा लाशों की दुनिया ये ग...

My cross to bear

Alone in a dark, rainy night Gripped with anxiety and fear And no, I can't share this one 'Cause this is my cross to bear Shaking up on the inside Yet putting a calm veneer Can't find another soul in sight For this is my cross to bear Broken within and carrying on Tempered flesh with scars as souvenirs Walking it off with a smile on my face As this is my cross to bear Life is but a cruel mistress And death is the mysterious lover Someday, we shall embrace, till then This is my cross to bear

बंद पड़ी किताबें

कुछ किताबें बंद पड़ी हैं अलमारी में जो ताकती मुझे कुछ लाचारी से की अरसा हो गया है ना पढ़े उन्हें जब बंद ही रखना था तो लाए क्यों हमें? कुछ किताबें बंद पड़ी हैं अलमारी में जिन्हें मेरे रवैये से बेज़ारी है वो पन्नों की सौंधी सी महक भी अब जाती है और रीढ़ भी अब खुलने पे कराहती हैं कुछ किताबें बंद पड़ी हैं अलमारी में कागज़ में लिपटी किस्सों की पिटारी है कहीं किलों में राजे-रजवाड़ों हैं कही उत्सव में बजते नगाड़े है कुछ किताबें बंद पड़ी हैं अलमारी में कुछ सिर्फ़ कहानियां हैं, कुछ खालिस चिंगारी हैं कहीं शब्द आत्मा को नोचती हैं और कहीं आत्मा खुद को शब्दों में खोजती हैं कुछ किताबें बंद पड़ी हैं अलमारी में ना पढ़ने की मेरी भी लाचारी है की तुम नही, तुम्हारे दोस्त भी हैं कई सारे इकलौती तुम ही नही करती हो हमें इशारे कुछ किताबें बंद पड़ी हैं अलमारी में इस लॉकडाउन की मेरी सवारी है कभी लगता जितनी हैं काफ़ी हैं कभी सोचता, अभी कई और दुनिया की सैर बाकी है