मैं
खुद को खुदा में खोजता भी मैं और खुद को ज़र्रा सोचता भी मैं इंसानों में नायाब, बेनज़ीर भी मैं और यूं ही बिखरा मुन्तशिर भी मैं मेरे हसरतों से जूझता भी मैं मेरे तोहमतों से टूटता भी मैं मेरे ख़ल्क़ में शामिल भी मैं मेरे अक्स का कातिल भी मैं मेरे अहम् से बड़ा भी मैं आज रस्ते पर खड़ा भी मैं ऊपर से अशफ़ाक़ भी मैं इरादों से नापाक भी मैं इस दुनिया का मुसाफिर भी मैं दुनियादारी का काफिर भी मैं इस मायाजाल का अनुरागी भी मैं सब छोड़ चला वो बैरागी भी मैं सब का रचयिता इलाही भी मैं वो कालरूप तबाही भी मैं ईमान में बसता स्याही भी मैं कौड़ियों में बिकता वाहवाही भी मैं ख़ज़ानों से बड़ा औकात भी मैं और कौड़ी से कम की खैरात भी मैं सड़कों पे गुस्साई भीड़ भी मैं और ऑफिस में गायब रीढ़ भी मैं फ़रक मिटाने का मांग भी मैं थप्पड़ से पौरुष जताता स्वांग भी मैं युगों-युगों का संस्कार भी मैं संस्कार का ढाल लिए धिक्कार भी मैं जब इतना द्वंद्व तो कौन हूँ मैं? अंदर है शोर, बाहर म...