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Showing posts from November, 2019

সংগ্রহ

এসো আজ আমার মনের গভীরে থেকে যায় যেমন নিঃশ্বাস শরীরে নিস্তেজ জীবনে রং ফিরিয়ে আন জ্যানো সাদা মুখ মাখা আবিরে তোমার নামে দিন শুরু তোমার নামে রাত শেষ তোমায় ছাড়া আমি কি? নিষ্প্রাণ এক অবশেষ একটা কথা বলি সোন, হে পার্থ পৃথিবীতে সবচেয়ে বড় স্বার্থ যে মায়ায় বেঁধে রয় সে অপদার্থ যে কাজ বের করে নেয় সেই সিদ্ধার্থ কিছুই যে বলতে পারি না তোমায় কাটিয়ে যাই মিলনের আশায় এই দূরত্ব আর সহ্য হয়ে না চলে এসো ও প্রিয়তমা আর কত অপেক্ষার কষ্ট দেবে আমায়

मेरे विचारों का पुलिंदा

किस्से और कहानियाँ सुनाना मेरे जाने के बाद मेरी दास्ताँ सुनाना गर इजाज़त ना हो चीखने की तो दबे होंठों से ही मेरा फ़साना सुनाना ज़रूरी नहीं की अपना मिलना तारों में लिखा हो मगर हमारे ज़िद के किस्सों से भी वाकिफ़ कहाँ हो तुम ये मन क्या है , एक सागर है विशाल , अथाह , और   अविरल और विचार भी इसकी लहरें हैं कभी खुद में टकरा के संगीत बनाती है और कभी कोलाहल क्या कहूँ मैं उसको जिसने   खोया है कोई अपना ज़बान भी काठ की है , और जिस्म भी साथ हूँ उसके अपनी खामोशी के साथ की अल्फ़ाज़ों की ज़रूरत नही इस मौके पे इश्क़ के लाल के ऊपर सियाही का काला बाज़ी मार गया हज़ारों पर परवान चढ़ा किस्सों का मेरे जहाँ एक से मोहब्बत हार गया किताबों का क्या है कुछ पन्नें , कुछ अल्फ़ाज़ एक शाहजहां , एक मुमताज़ एक अंजाम और एक आग़ाज़ बांध दो मुझे इन लोहों की बंदिशों में तुम , मगर मेरे तसव्वुर को किन बेड़ियों में बाँधोगे मेरे अल्फ़ाज़ों को क़ैद कहाँ कर सकोगे है जीवन एक कुरुक्षेत्र बड़ा शत्रु भी डटा आंखे गड़ा किंचित भयभीत ना हो तुम है कृष्ण तुम्हारे साथ...