एक आग कहीं लगानी है
एक मैसेज आया है व्हाट्सएप पे
की कल दुकानें बंद करानी है
कुछ तलवारें निकलवानी है
एक आग कहीं लगानी है
क्या हुआ जो हम सब एक नही
और मेरे इरादे नेक नही
जाति और क़ौम पे ये क़ुरबानी है
एक आग कहीं लगानी है
मुझे प्यारा बहुत मेरा नेता है
मुझसे आश्वासन वो लेता है
की ये चुनाव उसे जितानी है
एक आग कहीं लगानी है
ये शांति उसे पसंद नही
वो अमन-चैन के संग नही
कभी मंदिर, कभी मस्जिद तुड़वानी है
एक आग कहीं लगानी है
कुछ बसें जली तो क्या हुआ
कुछ मांगे उजड़ी तो क्या हुआ
इंसानों में भरी आज हैवानी है
एक आग कहीं लगानी है
करोडों का नुकसान हुआ
और लज्जा का अपमान हुआ
ये सब जनता दो दिन में भूल जानी है
एक आग कहीं लगानी है
दिहाड़ी में 350 रुपये भी तो आनी है
और वो बिरयानी भी तो खानी है
कुछ उधम आज मचानी है
एक आग कहीं लगानी है
मुझे पता नही ये रैली क्यों
मुझे मालूम नही ये दंगा क्यों
बस इन सब मे कटती मेरी जवानी है
एक आग कहीं लगानी है
Martin Luther King once said, "The irony of our times is that we have guided missiles and misguided men". The world has expectations from Indian youth, only that we can't give them a better stage than staging protests, observing (enforcing) Bandhs and venting out frustration often in the form of violence.
ReplyDeleteA great ode to the "Modern दंगई".
May we look inwards and introspect!