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Showing posts from March, 2018

मैं कवि हूँ

मैं कौन हूँ? मैं कवि हूँ आज भी हूँ और कल भी हूँ अमृत भी हूँ, हलाहल भी हूँ अजर हूँ मैं, अमर भी हूँ तप भी मैं, और समर भी हूँ मैं ही तो कविगुरु में बसता हूँ और महाकाव्य भी मैं ही रचता हूँ...

उधेड़बुन

घंटों ताकते रहता हूँ कोरे काग़ज़ को और वो मुझे देखते रहती की स्याही की एक लकीर खींच दूं एक अक्षर लिख दूं की एक शुरुआत करूं वापस लिखने की एक अरसा हो गया कुछ बातचीत किये हुए एक उम...