मैं कौन हूँ? मैं कवि हूँ आज भी हूँ और कल भी हूँ अमृत भी हूँ, हलाहल भी हूँ अजर हूँ मैं, अमर भी हूँ तप भी मैं, और समर भी हूँ मैं ही तो कविगुरु में बसता हूँ और महाकाव्य भी मैं ही रचता हूँ...
घंटों ताकते रहता हूँ कोरे काग़ज़ को और वो मुझे देखते रहती की स्याही की एक लकीर खींच दूं एक अक्षर लिख दूं की एक शुरुआत करूं वापस लिखने की एक अरसा हो गया कुछ बातचीत किये हुए एक उम...