लातों के भूत बातों से नहीं मानते

सुर्ख आँखे, पैने पंजे, सोच सड़ी
शिकार तलाशते ये भेड़िये समाज के
शर्मसार इंसानियत, रोती औरत, देखे खड़ी
नपुंसक जनता इस राम-राज्य के
नारी के छाती से लाज का आँचल तानते
लातों के भूत बातों से नहीं मानते

वो चौमिन खा रही थी
छोटे कपड़े पहन संकट बुला रही थी
वो लड़कों के साथ हंस-गा रही थी
वो पनघट से पानी ला रही थी
ये भेड़िये उमर सात या सत्तर नहीं जानते
लातों के भूत बातों से नहीं मानते

समाज के ठेकेदारों के रहम-ओ-करम पर रहना
परिवार की इज़्ज़त की खातिर बहुत कुछ सहना
भेड़िये जंगल ही नही, परिवार मे भी हैं मिल जाते
इस वाहियात बागीचे मे गुल नही हैं खिल पातें
आपके साथ हैं ये रहते आस्तीन के सांप से
ये लातों के भूत बातों से नही मानते

कभी गाँव-कभी शहर, हो रात या दोपहर
विचारों में दौड़ती भूखी-नंगी एक वहशी लहर
नवरात्री में देवी के नाम का उपवास करते
उसके बाद उसके मान का उपहास करते
रुकेंगे ये सिर्फ तुम्हारे हुँकार-गान से
क्योंकि ये लातों के भूत बातों से नहीं मानते

घटिया गानों और बातों का विरोध करो
जो इनसे तुम्हारा अपमान करे, तुम उनका प्रतिरोध करो
तामसिक प्रवृत्ति को दिखाओ अपना प्रकाश
इन भेड़ियों का तुम करो समूल सर्वनाश
किसी दिन ये जाएंगे अपने जान से
लातों के भूत बातों से नही मानते

Comments

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  4. Thank you all. Hope to see the culprits taken to task and made an example of.

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