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गोधूलि बेला

“ये लो। वैसे मैं इससे अच्छा बना लेता हूँ” कहकर रजत सुधा को भेल-पूरी का एक दोना पकड़ा देता है। “तूने खाया भी नहीं और अपने एक्सपेर्ट कमेंट दे दिये ? ” “नहीं , जब वो बना रहा था तो थोड़ा सा ले लिया था” “अच्छा , लेकिन मुझे कैसे पता होगा ? तूने कभी कुछ बना के खिलाया ही नहीं। खाली बोलता रहा कि बना के खिलाऊंगा” सुधा ने शिकायत करते हुए कहा। “ना कभी मौका ही था , ना दस्तूर” रजत ने अपनी ओर सफ़ाई दी और फिर कहा , “जानती हो , मैंने कभी सोचा नहीं था कि तुम्हें साड़ी में देखूंगा। यू नो , ऐसे नोर्मली , ऐसे खुले में विचरण करते हुए” “हाँ , मैंने भी नहीं सोचा था... लेकिन यही जीवन है। और कोई ऐसे खुले में नहीं घूम रही हूँ मैं। सीधे एक फंक्शन से आ रही हूँ। कि साहब आए हैं , थोड़ा मिल लूँ। बड़े लोगों के सानिध्य में रहने से फ़ायदा ही होता है , ऐसे बड़े-बुजुर्ग कह गए हैं।” सुधा अपने पास रेत को साफ़ करके रजत को बैठने का इशारा करती है। “ ‘ बड़े-बुजुर्ग ’? मुहतरमा थोड़ी सी शरम कर लीजिये। आप खुद बड़े और बुजुर्ग दोनों वर्गों की प्रीमियम सदस्या बन चुकी हैं” कहकर रजत अपने चप्पल को बाजू में रखकर सुधा के बाएँ तरफ़ बैठ जाता ...