Posts

Showing posts from January, 2024

किसी और जनम में

किसी और जनम में किसी और जहाँ में मुझे पता है तुम मेरे हो   जहाँ ना सरहदें हैं ना हदें हैं हैं तो बस मैं और तुम   किसी और जनम में किसी और जहाँ में ना बंदिशें होंगी ना आज़माइशें होंगी   जहाँ मुनासिब अल्फ़ाज़ होंगे जहाँ मुख्लिस अंदाज़ होंगे और होंगे सुनाने को कई किस्से और रोकने को होंगी नहीं समाज की ये बेड़ियाँ   जहाँ मैं शायद इतना बिला-तकल्लुफ़ हूँ की खुद के जज़्बातों से रु-ब-रु हूँ जहाँ मैंने खुद से खुद को पर्दा नहीं किया जहाँ मैंने तुम्हें रुसवा नहीं किया   किसी और जनम में किसी और जहाँ में मैं शायर नहीं हूँ की उस जनम में उस जहाँ में मैं इतना बदनसीब भी नहीं हूँ

हम अकेले रह जाएंगे

एक रोज़ नई सुबह होगी और हम अकेले रह जाएंगे मने एकदम अकेले नही होंगें बस सब अपनी-अपनी डगर पकड़ लेंगें कोई करियर को लेकर कोई लेकर परिवार को कोई बाल-बच्चों में लीन कोई लेकर व्यापार को और हम भी खोजेंगे खुद को व्यस्त रखने वाले उपाय कभी किताब के पन्ने पलटेंगे कभी बना लेंगे एक कप चाय लेकिन बात करने को कोई ना होगा और करनी भी क्यों है सबके अपने मसले हैं सबके अपने पचड़े हैं खुद को ही वो संभाल ले ये क्या कुछ कम है जो उन्हें आकर सँवारनी पड़े हमारी ज़िंदगी भी समेटना पड़े हमारे बिखरे टुकड़े भी कुछ दस-बीस साल काटने होंगे कुछ जागती रातें बितानी होंगी कुछ और किताब पढ़ लेंगे कुछ रेडियो पे धुन चलानी होंगी