Posts

Showing posts from July, 2022

घाट बनारस

“झ्स्स…” की आवाज़ के साथ वैदेही ने माचिस जलाई और कमरे के अंधकार में माचिस की आभा में उसका चेहरा दीप्तिमान हो उठा। एक पल तो ऐसा था जब राघव को उसका चेहरा छोड़ और कुछ दिख ही नहीं रहा था। वैदेही ने माचिस से लालटेन की बाती को जलाया और पूरा कमरा उसके बसंती रोशनी से नहा गया। वैदेही ने उस पर शीशे की चिमनी डाली, जो सतत इस्तेमाल से थोड़ी स्याह हो चली थी। राघव ने कहा, “लाइट वापस आती है तो चिमनी साफ कर देता हूँ।” “आराम से करना”, वैदेही ने कहा, “पिछली बार तुमने जल्दी कर दी थी, और पानी पड़ते ही वो चटक गई थी। एक्सट्रा खर्चा नहीं करना है।” राघव वैदेही की इस बात पर उसकी तरफ़ दो पल टकटकी लगा कर देखता रहा। “क्या? मैं बस आगाह कर रही थी। अगले महीने दिल्ली जाना हुआ तो टिकट के खर्चे हो सकते हैं, इसीलिए बोल रही थी।” “जी, मेम साहब।” राघव ने इस तर्क को सही मानते हुए वैदेही को सलाम ठोक दिया। राघव और वैदेही को थोड़ा ही अरसा हुआ था बनारस आए हुए। बिजली ने तो रस्म बना ली थी हर शाम को मुंह चुराने की। अगर शाम को ठंडी हवा बहती तो ये छत पर हवा खा लेते थे। नहीं तो इन्होंने भी संध्या तिमिर को आत्मसात करते हुए शाम क...