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सत्य की उलझन

शाम के तकरीबन चार-साढ़े चार बज रहे होंगे। कोलकाता मई की अकस्माक बारिश में खुद को धो रहा होता हैं। अजीत और सत्यवती बैठक में खिड़की के पास कुर्सी लगा कर रम्मी खेल रहे हैं। इतने में ही पूंटीराम चाय और प्याज़ के पकौड़े लाकर बीच में राखी कॉफी टेबल पर परोस देता है।  "और कुछ लगेगा, बहूमाँ?" "नहीं पूंटीराम। आप रसोईघर साफ़ कर दीजिये। और फिर थोड़ा आराम कर लीजिएगा। ये आते हैं तो पूछती हूँ क्या बनाना है रात के लिए।" अजीत अपने दाएँ जेब से सिगरेट की डिब्बी निकालता है। उससे एक सिगरेट निकाल कर होंठों के बीच में थामता है। माचिस जलाते हुए उसकी नज़र सत्यवती के चेहरे पर भरे अस्वीकृति वाले भाव पर पड़ती है।  "अरे पीने दो ना। बोउठान *, देखो कितना सुंदर माहौल बना हुआ है: बारिश, ताश, चाय और प्याज़ के पकौड़े! इसमें अगर सिगरेट नहीं रही तो एकदम किसी चीज़ का अभाव बना रहेगा।" "मुझसे क्यों अनुमति माँग रहे हैं, ठाकुरपो *? मैं कहाँ रोक रही हूँ? और जैसे मेरे मना करने से आप दोनों रुक जाएंगे।" अजीत सिगरेट सुलगा कर दो कश लगाता है। धुएँ के छल्ले बैठक में तैरने लगे। बाहर हो रही बारिश हवा के हर व...