बंद पड़ी किताबें
कुछ किताबें बंद पड़ी हैं अलमारी में जो ताकती मुझे कुछ लाचारी से की अरसा हो गया है ना पढ़े उन्हें जब बंद ही रखना था तो लाए क्यों हमें? कुछ किताबें बंद पड़ी हैं अलमारी में जिन्हें मेरे रवैये से बेज़ारी है वो पन्नों की सौंधी सी महक भी अब जाती है और रीढ़ भी अब खुलने पे कराहती हैं कुछ किताबें बंद पड़ी हैं अलमारी में कागज़ में लिपटी किस्सों की पिटारी है कहीं किलों में राजे-रजवाड़ों हैं कही उत्सव में बजते नगाड़े है कुछ किताबें बंद पड़ी हैं अलमारी में कुछ सिर्फ़ कहानियां हैं, कुछ खालिस चिंगारी हैं कहीं शब्द आत्मा को नोचती हैं और कहीं आत्मा खुद को शब्दों में खोजती हैं कुछ किताबें बंद पड़ी हैं अलमारी में ना पढ़ने की मेरी भी लाचारी है की तुम नही, तुम्हारे दोस्त भी हैं कई सारे इकलौती तुम ही नही करती हो हमें इशारे कुछ किताबें बंद पड़ी हैं अलमारी में इस लॉकडाउन की मेरी सवारी है कभी लगता जितनी हैं काफ़ी हैं कभी सोचता, अभी कई और दुनिया की सैर बाकी है