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चाय

सुबह का माहौल था। घर में वही हड़बड़ मची हुई थी जो अमूमन हर घर में देखने को मिलती है। प्रखर अपनी सात-वर्षीय बेटी नेहा को स्कूल के लिए तैयार कर रहा था। उसकी पत्नी विद्या रसोई में नाश्ता तैयार कर रही थी। विद्या के पिताजी अब इनके साथ ही रहते थे। वो बालकनी में अपनी कुर्सी लगा रहे थे, जहाँ पर वो नवंबर की मीठी धूप का आनंद लेकर आराम से अपनी किताब पढ़ सकते थे। प्रखर के माँ-बाप उसके भाई-भाभी के साथ पास के अपने घर में रहते थे।  नेहा को तैयार कर, प्रखर रसोई में झांकते हुए पूछता है, "तुम्हे कोई मदद लगेगी मेरी?" अपने काम में तल्लीन विद्या ने बिना नज़रें उठाये बस छोटा सा "नहीं" कहा। प्रखर "ओके" बोलकर बाहर बैठक में आ बैठता है।  सोफ़े पर बैठ वो सुबह का अख़बार उठाता है और पन्ने पलटते हुए खबरों को छानता जाता है। खबरें भी वही की वही। कहीं किसी नेता ने घोटाला कर दिया, शहर में एक-आध क़त्ल की घटनाएं, और किसी छोटे से 'सेलिब्रिटी' के किसी कथन पर सोशल मीडिया में कोई नया बवाल हुआ तो उसको लेकर अलग-अलग सबके विचार।  अब तक विद्या नाश्ता तैयार बनाकर टिफ़िन का डब्बा तैयार कर लिया था। वो न...